
ट्रंप की अलगाववादी नीति से डॉलर लड़खड़ाया, दुनिया भर में चिंता की लहर दौड़ी।
अमेरिकी डॉलर पर काले बादल मंडरा रहे हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अलगाववादी ट्रेड नीतियां डॉलर की वैश्विक प्रभुत्व पर गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं। विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि उनकी नीतियां "डॉलर-मुक्तिकरण" (de-dollarization) की प्रक्रिया को तेज़ कर सकती हैं, जिसे कई लोग खतरनाक और अस्थिरता बढ़ाने वाला मानते हैं।
प्रमुख बैंकों के मुद्रा विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि ट्रंप की टैरिफ नीति डॉलर की साख को कमजोर कर सकती है। खासतौर पर यह सवाल उठ रहा है कि क्या डॉलर अपनी पारंपरिक "सुरक्षित ठिकाने वाली मुद्रा" की भूमिका बनाए रख पाएगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि व्हाइट हाउस का संरक्षणवादी रवैया दुनिया को डॉलर से दूर ले जाने की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है।
एक हालिया सर्वेक्षण में 51 मुद्रा रणनीतिकारों में से 19 ने कहा कि डॉलर की प्रतिष्ठा को झटका लग सकता है, खासकर दीर्घकालिक दृष्टिकोण में। डॉयचे बैंक के वैश्विक अनुसंधान प्रमुख जॉर्ज सारावेलोस का मानना है कि डॉलर की सुरक्षित मुद्रा के रूप में पहचान कमजोर हो सकती है। वे इस निराशाजनक परिदृश्य के लिए अमेरिका की बिगड़ती आर्थिक संभावनाओं और वैश्विक कानूनी ढांचे में बढ़ती अस्थिरता को ज़िम्मेदार मानते हैं। इस माहौल में निवेशकों के पास डॉलर को थामे रखने के कम कारण रह गए हैं।
जेपी मॉर्गन के मुद्रा विशेषज्ञ अरिंदम संधिल्य ने भी इसी विचार को दोहराया और भविष्यवाणी की कि अगले दो दशकों में केंद्रीय बैंकों के भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी धीरे-धीरे कम हो सकती है, जिससे बाज़ार के प्रतिभागी विकल्प तलाशने लगेंगे।
इस समय, सोना सबसे प्रमुख विकल्प के रूप में उभर रहा है। यह कीमती धातु उन निवेशकों को आकर्षित कर रही है जो एक अनिश्चित वित्तीय परिदृश्य में स्थिरता की तलाश में हैं।